दर्द

फिर क्यों दर्द भरी याद आई
शायद फुर्सत नही किसी में
क्यो दर्द भरी रुदाद छाई।

सोचता हूँ अक्सर शब-ए-गम
दिल में अजब दर्द छलका
निकले शायद रुह-ए-दम।

दर्द भरी आवाज दे के देख
खामोशियाँ मेरी यूँ ही नहीं
दर्द से दर्द की मुहब्बत देख ।

हम पे भी लगा इक इल्जाम
दास्तान-ऐ-दर्द कहने का
दर्द से दर्द मे भी है पैगाम।