गुनहगार

देखा तुम्हें मुहब्बत की नजर से
सारे जमाने के
गुनहगार तो हम ही थे
कुछ चिराग बुझ गए
तेरी अंजुमन में जल के
कोई तो खुशनसीब रहा होगा
आखिर जिस पे होंगे तुम मेहरबाँ
कुछ मेरी हसरते भी निकली
आज मेरे आसूँओ में ढल के
इश्क़ तौफ़ीक़ है गुनाह नहीं
मुद्दत हो गई मेरे गुनाहो की
क्या तेरी रहमत भी
मोहताज है मेरे गुनाहो की
कौन सा किया जुर्म
क्या सितम है ढाया
हाँ देखने वाले हम ही थे
तेरी नजर की गुलिस्ताँ में
सब खिले हुए सुमन ही थे
इक खार तो हम ही थे
देखा तुम्हें मुहब्बत की नजर से
सारे जमाने के
गुनहगार तो हम ही थे।