अर्थी

सजने लगी अर्थी हमारी
कितने कंधो पर पड़ेगी भारी
रोने लगी पत्नी हमारी
थी बेचारी किस्मत की मारी
समझाने लगी जनता सारी।

चलने लगी जब अर्थी हमारी
कंधा दे बेटा साथ में बेटी बेचारी
पोते ने किया नमन मारी किलकारी
बहु बेटे को भी लगी चित्कारी
समझाने लगी जनता सारी।

आगे बढी जब अर्थी हमारी
रीति रिवाजो की थी भरमारी
निभने लगी रिश्ते और नातेदारी
यह सब है दुनिया दारी
समझाने लगी जनता सारी।

पहुँची जब शिव धाम में अर्थी हमारी
होने लगी दाह संस्कार की तैयारी
किसी ने शाल किसी ने चद्दर वारी
यह थी हमारी आखिरी सवारी
समझाने लगी जनता सारी।

चिता पर सजी जब अर्थी हमारी
दे मुख अग्नि रीति निभाई सारी
हम से हमारी जिंदगी हारी
आज हमारी कल आपकी बारी
समझाने लगी जनता सारी।

सजने लगी जब अर्थी हमारी
समझाने लगी जनता सारी।