गरीब कुम्हार

आ बैठा है वह
अरार पर बेखबर
समय के भूखे पेट में
बिलाते जा रहे सूरज के साथ
रुक गया है समय का चाक
सूरज का धीरे धीरे
गायब हो जाना
भूल गया है
वह एक अकेली मुठ्ठी
और उससे झरते जा रहे समय को
चाक रुक गया है उसका
या समय झरकर रुक गया
उसकी बदहाली देख कर
पड़ा है मिट्टी का लोन्दा
पिछले चार दिन से
नही गाया गया है
नाचते चाक की लय पर
मिट्टी का कोई गीत
यहाँ इस एकांत मे
रोटी के सपने को
नंगा बदन और भूखे पेट
कैसे करे पूरा
घर भी है आधा अधूरा।