फिर से लिख रहा हूँ

मै वही इतिहास फिर से लिख रहा हूँ
बंद कर परिहास फिर से लिख रहा हूँ।

बन रहे थे जो अब तक धुर विरोधी
हो गए हैं अब खास फिर से लिख रहा हूँ।

चंद दिन पहले ही बनी थी यह सड़क तो
जम गई है घास फिर से लिख रहा हूँ।

बात जो तुम कर रहे हो इस तरह से
आ रही ना रास फिर से लिख रहा हूँ।

सीढियाँ हर दिन युवा गर चढ रहे हैं
इतनी क्यो भड़ास फिर से लिख रहा हूँ।

न्याय का यह खेल अब तो सालता है
मत करो दुहाई फिर से लिख रहा हूँ।

यह सियासत चाहता है मोहरा बस
क्यो लड़ा चुनाव फिर से लिख रहा हूँ।

बढ रही जो दुरिया सब के दिलो में
छू रही आकाश फिर से लिख रहा हूँ ।

किस तरह इंसान “मोहन” जी सकेगा
चुभ रहा आभास फिर से लिख रहा हूँ।