ऐ मेरे रक़ीब

आज तुम्हारे प्यार भरे खत में
यह सलाम किस का है
ना है रक़ीब तो
आखिर वो नाम किस का है
ले लो मेरे तजुर्बों से सबक
ऐ मेरे रक़ीब
उम्र में तुमसे बडा ही हूँ
सदमे उठाये रश्क़ के
कब तलक, जो भी होगा
जैसा भी होगा
या तो रक़ीब नही
या आज ‘मोहन’ नही।