रजनी

निश्चित छटेगी रजनी काली
वृथा अमृषि मीत रुदाली।

नया पल्लव नया राग प्रभाती
नवल सुरोरूह मलय हवाएं
बीते कल मे सीख परख है
हम गाढ़े बोझ सम्वेत उठाए
संघर्षों से तपे चेतना
संबल पावन वेद ऋचायें
भ्रम मे भय का वास प्रखर जी
बजती दोनों हाथो से ताली
निश्चित छटेगी रजनी काली।

दैहिक दैविक ताप भौतिकी
जग विकार से आहत था
महा त्रासदी विषदंतो से
हारा मन जीवन चाहत था
नव प्रभात उल्लास नवल शुभ
दुर्योग कलुष भी लानत था
करना होगा पुरुषार्थ परिश्रम
मोहन नाहक कर बैठे जुगाली
निश्चित छटेगी रजनी काली।