शाम सुरमई सी डॉ मोहन लाल अरोड़ा एक शाम सुरमई सीऔर हल्का सा अंधेरागोया कि बादलों नेतान दी हो सूरज परसांवली सी चादर।ये ऊँचे चिनार चिनाब का बहनाजमीं पर बिखरे पत्तों की खड़खड़ाहटधीरे धीरे गुनगुनाती हवातिलिस्मी समां का अहसासकराता ये नज़ारा।महबूब की नजाकत नफासतशरारत मिल करती है मदहोशतो कभी तक़सीम हो करले आती है मोहन वहीमखमली दुनिया सेसंगदिली दुनिया में।