लालसा

ना आह की कोई रिवाईश
ना वाह की कोई ख़्वाहिश
निष्काम देव करूँ तेरी साधना
मेरे मन को रखना पवित्र
विचार रखना मेरे नेक
साहस से करना नही वंचित
सामाजिक दुख दर्द का मै
वर्णन लिख सकूँ बेबाक सचित्र
कलम बंधन मे बंध सके
मुझे बनाना नही कमजोर
धन की तराजू तोले नही
बदले कभी नहीं मेरा चरित्र
मजबूर कर सके कोई नहीं
लालसायें हो इतनी सीमित
गलती खुद की स्वीकार सकूँ
मेरे दिल को रखना पवित्र
कपटियो का भय कभी ना हो
इरादे कभी मेरे हो नही दूषित
मेहरबानी हे दाता ! ‘मोहन’ पर इतनी रहे
नई रचना तेरे चरणो मे करता रहूँ अर्पित।