हर बात में

हर बात मे वह थोड़ी जिद करतीं है,
अजब सी यह उसकी एक आदत बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी रूठ जाती है,
अजब जी यह उसकी एक प्रकृति बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी लीन हो जाती है,
अजब सी यह उसकी एक कलाकृति बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी मौन हो जाती है,
अजब सी यह उसकी एक गुफ्तगू बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी पलकें झुका लेती है,
अजब सी यह उसकी एक सहमति बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी विनम्र हो जाती है,
अजब सी यह उसकी एक संस्कृति बन जाती है।

हर बात मे वह थोड़ी तबदीली ले आती है,
अजब सी यह उसकी एक क्रांति बन जाती है।

हर बात मे वह मुझे और मैं उसे स्वीकार कर लेता हूँ,
अजब सी यह उपमा राधाकृष्ण बन जाती है।।