वो अपनी आदत से मजबूर थी

वो अपनी आदत से मजबूर थी
मैं अपने स्वाभिमान से मजबूर था
मजबूरी के इस बेढंगे आलम में
हम दोनों पास होकर भी दूर थे ।

आँखों मे उसके आँसू थे
चेहरे पर मुस्कान थी
बस यूं ही कुछ ऐसी
ये हमारी आखिरी मुलाक़ात थी।

चिंता नहीं इस बात की
वो आखिर क्यों चली गई
ग़म है मुझे इस बात का
वो होकर बदनाम चली गई।

मैं आंखे बंद किए रहा
मगर नींद कहां आयी
बिस्तर से उठकर देखा
वो आँगन मे खड़ी पायी।