ऐसा सुख क्यों लेती हो नेहा अपराजिता ऐसा सुख क्यों लेती होजो तुम्हारा शोषण करता हैऐसा सुख क्यों देती हैजो तुम्हारा दोहन करता हैऐसी भी क्या कामनाजो सत्य से कोसों दूर हैऐसी भी क्या चेतनाजो सब अचेतन करता हैकब तक जलाती रहोगी अपनी ही चिताक्या ऐसे ही कहलाओगी तुम “अपराजिता” !!