वे ही प्रकृति होती हैं
प्रेयसी प्रेम करते वक़्त हृदय की
सम्पूर्ण भावनाओं को सौंप देती हैं अपने प्रेमी को
खुद को किसी को सौंपने से पूर्व
वो नही सुनती अपने पूर्वाभास की
प्रेम उसे अंधा नही, निर्णयहीन कर देता है
उसके प्रेमी को प्रेम नही खुद्दारी पसन्द है
प्रेम उसे खुद्दारी सिखाता है
ख़ुद की वास्तविकता बदल प्रियसी खुद्दार हो जाती है
पहले प्रेमी की ख़ुद्दारी उसे मारती है
उसके जाने के बाद,
उसकी सिखाई हुई ख़ुद्दारी से वो खुद को मारती है
वो जो उसे अस्वीकार गया
वो ही उसे खुद को अस्वीकार करना सिखा गया
अपने वास्तविक स्वरूप को त्याग देने के बाद
अवास्तविक स्वरूप को ईश्वर नही स्वीकारता
ईश्वर भी ख़ुद्दारी जानता है
जो चीज़ जैसी बना कर भेजता है वैसी ही वापस लेता है
प्रेमी भगवान से भी ऊपर है
प्रियसी सृष्टि की सबसे नीच योनि से भी नीच
उसने ईश्वर को साधे बिना ख़ुद को बदल डाला
इस दुनिया और उस दुनिया के बीच ये प्रियसियाँ
बादलों के बीच ही रहतीं हैं
इस प्रकृति की जितनी कोमलता है, सुंदरता है
उस सुंदरता ने इन प्रियसियों की आत्मा को
अपने वजूद में सोख रखा है
वो जिनके पुरुष नहीं होते हैं
उनकी प्रकृति होती है
या यूँ कहूँ
वे ही प्रकृति होती हैं।