ये शहर नहीं अफ़ीम है

हर नुक्कड़ पर चौराहे पर
हर चाय की टपरियों पर
लल्ला चुंगी के इधर-उधर
गंगा यमुना और संगम है जिधर
विश्वविद्यालय के हर गेट पर
भौकाल और गर्दा लपेटकर
उस घने बरगद के नीचे
या महिला छात्रावास के पीछे
यू रोड की भीड़ में सनकर
लाल पदमधर की ऐतिहासिक प्राचीर में रम कर
रेत पर बैठ गुटरगूँ करते
माघ कुम्भ में ओंकार भरते
आनन्द भवन में मंडराते
कम्पनी बाग में टहलने जाते
गुस्से में सीधे कान के नीचे रसीद काटते
तुम ना सुधरबो की रट लगाते
यह पूरा अड्डा है भोले भक्तों का
गण प्रेतों का, रोज़गार का, भत्तों का
ये शहर नहीं अफ़ीम है
और हम इस शहर के सबसे बड़े अफ़ीमची !!