आज़ाद होते ही

आज़ाद होते ही
हम सब भागेंगे अफरातफरी में
बच्चें आयेंगे माता-पिता के पास
दोस्त, दोस्त के पास
प्रेयसी जायेगी अपने प्रेमी के पास
और
हम सब अपने दुश्मनों के पास
करीब पहुँचते ही
भींच
लेंगे हम उनको
सारे अधूरे संवाद अटक जायेंगे गले में
और
अहक भर अँगारे फ़ूट पड़ेंगे आँखों से
उनमें होगी माफ़ी, प्रेम, शर्मिंदगी
और होगी क्षमा
सिसकियां और दम संभालती हिचकियाँ
बचा लेंगी मानवता को
उन छलकते अंगारों के स्पर्श से
तृप्त होगी धरती
और
तृप्त होगी मानवता
खुशकिस्मत होंगे वो जिनके संवाद हो जायेंगे सम्पूर्ण
बेशक़ हम नये मानव होंगे
हम सब होंगे इतिहास में दर्ज़
वो इतिहास
जो अभी है एकांत में
और
अनिद्रा में भी !!