मन का ज़हर

फिर नहीं चुभती हैं वह नज़रें
जिनकी नज़रों में नज़रें डाल
आपने बुन डालें हो मन के ज़हर के ताने-बाने
एक दूजे के मन का ज़हर पी लेना
मन को तो हल्का कर देता है
पर जीवन को भारी।

ज़हर का भी अपना विज्ञान है
ख़ुद ज़्यादा मात्रा में पीने से
दूजा आपको कमज़ोर समझता है
दूजे को ज़्यादा मात्रा में पिलाने से
आप बन जाते हैं और भी ज़हरीले
बराबर मात्रा में ज़हर का स्वाद
दोनों की स्तिथि को कर देता है एक लावारिस लाश सा
जिनके दोबारा नज़रों में डूबने का समय हो चुका है पूर्ण
वे हमेशा लहरों में उतरा कर बहेंगे
उनका यूँ सतह पर उतराते बहना
देता रहता है चीलों को कौओं को निमंत्रण
कि वे भी आयें और
नोच-नोच कर, कर दें उस बदन में इतने घाव
कि उन घावों से निकल वह ज़हर
कर दे पूरी नदी को ज़हरीला

ज़हर का अपना दर्शन भी है
विद्या प्राप्ति के लिये ज़हर पीना
ज़रूरी नही कि आपको अर्जुन ही बनाये
आप बन सकते हैं एकलव्य और कर्ण
कट सकता है अगूंठा, विस्मरण हो सकता है विद्या का।

सम्मान प्राप्ति के लिये ज़हर पीने से
ज़रूरी नहीं आप बन जाये विभीषण और
प्राप्त हो जाये सोने की लंका
आप बन सकते हैं सीता
देनी पड़ेगी अग्नि परीक्षा, काटने होंगे वन में दिन
समाना होगा धरती में।

आत्मसम्मान के लिये ज़हर पीने पर
ज़रूरी नहीं आप बन जायें भीष्म पितामह
प्राप्त कर लें इच्छा मृत्यु का वरदान
आप बन सकते हैं द्रौपदी
घसीटा जा सकता है आपको सभा में
हो सकती है महाभारत।

अपनों के हित के लिये ज़हर पीने से
ज़रूरी नहीं आप बन जायें गोविंद
रच डाले नारायणी सेना
आप बन सकते हैं अभिमन्यु
घिर सकते हैं चक्रव्यूह में
रथ का टूटा हुआ पहिया हाथ में उठाये !!