त्वमेव सर्वं मम् देवदेव
जिन्हें मिटना पसन्द था वे मिटने के लिए मिट्टी में सने रहे
झुकने की दुनिया में सब झुक रहे थे
झुकने की शर्त थी कि वे मिट नहीं सकते थे
मिटने की शर्त थी लम्बवत, सीधा और सपाट रहना
जिससे दूर से मारे जा सकें सपाट संज्ञा पर कंकड़
इसी तरह मिट्टी और मिटने वाले की कीमत कम होती जा रही
इसी तरह बढ़ती जा रही झुकी हुई रीढ़ की संख्या
जैसे गायब हुई थी मनुष्य की पूँछ वैसे ही
यह सभ्यता बिना रीढ़ के मनुष्यों की सभ्यता कही जायेगी।
जिन्होंने कहा कि “मुझे डर है उनसे”
दरअसल, उन्हें दूसरों से नहीं
खुद की करनी से डर था
डर था कि कहीं
मुँह से निकली सच बात पर यक़ीन करते ही
उसके सारे भेद खुल पड़ेंगे दुनिया के समक्ष
हम ताउम्र अपने ही किये से डरते रहते हैं
हम ताउम्र अपने किये का दोष दूसरों के सिर मढ़ते रहते है
दोषों की चोरी और दोषी की सीनाज़ोरी
अपने चरम पर खड़ी हो कर सत्य को गर्त में ढकेल रही है
यह सभ्यता सत्य के दमन की सभ्यता कही जायेगी।
जिन्हें नहीं था अभ्यास झूठ सहने का
ना ही अभ्यास झूठ कहने का
उन्होंने सबसे ज़्यादा सहे झूठ
उन्होंने सबसे ज़्यादा ज़लील होते देखा सच को
ये देखना और ये सहना
इस हाड़ माँस को घिस-घिस कर बुरादा बनाये डाल रहा है
हमारी सभ्यता के अवशेष से नहीं मिलेंगे अन्नागार और स्नानागार
यह सभ्यता बुरादों और बारूदों की सभ्यता कही जायेगी।
जो नहीं करते हैं परित्याग अपनी मूलता का
उनके मूल पर ही चोट की जाती रही
हुजूम को पता है कि
हड्डी के ढांचे को कैसे निचोड़ना है और ज़ोर देना है
कि कहो – त्वमेव माता च पिता त्वमेव,
त्वमेव सर्वम मम देवदेव !
इंसानों का जोर है कि इंसान,
इंसान की शरणागति स्वीकार करे
विधाता ने कभी नहीं जोर दिया
कि इंसान उनकी शरणागति स्वीकार करे
ये सभ्यता मानवता के विपरीत प्रवाह में
बहने की सभ्यता कही जायेगी।