अश्कों में बहते तराने निधि चौधरी मैं अश्कों में बहतें तराने लिखूंगी,बुरे दौर के कुछ फ़साने लिखूंगी ।कि दुनिया हमारी है जालिम बहुत ही,वो मासूम दिखते सयाने लिखूंगी ।सदाकत, रफ़ाक़त, मुहब्बत हमारी,ये सारे कुचलते ज़माने लिखूंगी ।सिकंदर हज़ारों ज़माने में लेकिन,मैं हारी हुई दास्ताने लिखूंगी ।इबादत है बिकती हां भक्ति भी बिकती,मैं सच बोलते वो मयखाने लिखूंगी ।ज़मीं से उठा के फ़लक पे बिठाया,मैं दिल जीतते वो दिवाने लिखूंगी ।बुराई से लबरेज़ दुनिया है फिर भी,फरिश्तों के कुछ आशियाने लिखूंगी ।मुझे कर के यूँ दर ब दर जाने वाले,कतल करते किस्से पुराने लिखूंगी ।है “निधि” मग़र कुछ फरिश्तों से यारी,कि यारी को अब मैं खजाने लिखूंगी ।