मजदूर दिवस है

घर से हूँ बेघर
अपनों से दूर हूँ
भटका हुआ सा
मैं इक मजदूर हूँ
न सरकार मेरी
न अखबार मेरा
देश की सुर्खियों से
नहीं सरोकार मेरा
हो रही संसद में बहस है
आज मेरा ही दिवस है
भूखे ही बीते मेरे कई पहर है
मुझे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।

मैं मजदूर हूँ
मैं बेबस
मैं मजबूर हूँ
मुझ से ही
कारखानों में खुशामदीद
मैं लहलहाती
फसलों का चश्मदीद
तिमिर सा मेरा
हर सहर है
मुझे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।

हमने बनाएं
आशियाने हज़ारों
हमने बसाये कई शहर
फिर भी हम दर-बदर हैं
हमे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।

मैले कुचैले ये हाथ मेरे
परिवार मेरा इन्ही के सहारे
बच्चें कुपोषण के शिकार है
सालों से माँ मेरी बीमार है
बदले जो सत्ता, मुझे क्या असर है
मुझे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।

पूस की रात का मैं ही गवाह
तपती धूप में सुलगता मैं बेपनाह
नेता के वादें
विधाता के मौसम
बिजली की धर घर
बरसते मूसलधर
ये सारे मुझपे बेअसर हैं,
मुझे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।

खेतों को पसीने से अपने
मैं सींचता हूँ,
स्वाभिमान अपना
कभी न बेचता हूँ
हाथो में छाले, पैरों में बिवाई है
जिस्म गिरवी रख,
रोटी की क़ीमत, मैंने चुकाई है
जिस्म ये मेरा
बन चुका पत्थर है
मुझे क्या खबर है ?
मजदूर दिवस है ।