क्रंदन के बादल

चंचलता मुझमें समा गई
ज्योति जीवन की बुझा गई।
मिटने की राह दिखाने वालों,
तेरा घर कैसे जला गई?

अपनापन भुला दिया तुमने!
मुझपर जब छाई उदासी।
देख मेरे दृग अश्रुधारा,
तेरी आंखे भी प्यासी।

जब से मैंने आंखे खोली,
जग में क्रंदन ही देखा,
मेरे प्यासे इन अधरों ने,
खींच दिया जीने की रेखा।

पग-पग पर सीख सिखाने वालों!
तेरी ममता जब से मुरझाई
सूखी जीवन की सरिता में,
छाई वेदन सी अमराई।

दिशाहीन गतिहीन हुआ हूँ,
मुझसे अपना स्नेह मिटा!
नैश तमस में मन मलिन पर,
तुझपर से अभिभार हटा।।

बाँट जोहता कब आओगे,
निशा बीत चली पंख समेट।
मेरे मन की उच्छ्वासों में,
पीड़ा सूनी प्यार पली।

देव ! तुम्ही अब पथ दिखलाओ,
जग में बसाने को लाये तो
मेरी पीड़ा धूल जाने से,
तेरी अनुशंसा निखरी।।