जीत कर पूनम यादव मैं निरंतर बढ़ती रहूंगी,चाहे दुनिया देखती रहे आँखे तरेर कर।मेरे कदम उस वक्त भी नही रुकेंगे,जब पूरी दुनिया खड़ी हो मुझे घेरकर।जब उम्र मेरी फूल की थी,तभी से शुरू है शूल की बारिश।आखिर बचा कौन है यहाँजो मुझे कहा न होगा लावारिस।कभी माँ-बाप की हैसियत,पुश्तैनी,आखिर लोगो ने किस-किस को नही कोसा।पर तब भी और अब भीमुझे अपने बाजुओं पर है पूरा भरोसा।क्यों शक है लोगो को मेरे हौसले,हिम्मत और सभ्यतामयी सीख पर।ओ मुझसे नफ़रते करनेवाले लोग सबरख लें अपनी हाथों पर लिखकर।जिस दिन मौका मिले आयेंगेपूरी मजबूती के साथ इस महफिल में लौट कर।इन तमाम दुनिया वालों केदिलों में रख दूँगी सरेआम जीत कर।