स्मृतियाँ

क्या याद नही तुम्हें महान वो “राणा”
चेतक जिनका घोड़ा था।
मानसिंह को धूल चटा जिसने,
अकबर का अभिमान तोड़ा था।

क्या याद नही तुम्हें वह पांडेय “मंगल”
छेड़ा था जिन्होंने पहला दंगल।
मुमकिन नही भुलाना, इनके बलिदान को
भुला कैसे दिया जाए, उनके संघर्ष महान को।

क्या याद नही तुम्हें एक वो “मर्दानी” थी
फिरंगियों की याद, जिसने दिलाई नानी थी।
जंग लगी तलवारो को खून से जिसने पोछा था,
प्राण वारने देश पर, एक क्षण भी ना जिसने सोचा था।

क्या याद नही वह “सरफरोश” तुम्हें
जो सरफ़रोशी की तमन्ना, दिल मे लिए चलता था।
आजादी को पाने हर पल,
खून जिनका उबलता था।

क्या याद नही वह “आजाद” तुम्हें
जो आजादी की कसमें खाता था।
अंग्रजो के हाथों मर जाऊं,
कभी न उसको भाता था।

क्या याद नही आजादी का वो “दीवाना” तुम्हें
जिसने असेंबली में बम फेंके थे।
भाइयो को अपने कितने ही,
फांसी पर चढ़ते देखे थे।

क्या याद नही तुम्हें वो “सुखदेव“ जिन्होंने
सुख अपने सारे बिसारे थे।
इंकलाब की खोज में,
जिन्होंने प्राण अपने वारे थे।

क्या याद नही तुम्हें वो “नेताजी बोस”
चाहत थी इंकलाब की,इरादे थे जिनके ठोस।
लड़ी लड़ाई आजादी की, हिन्द फौज बनाई थी,
कण रक्त का अंतिम भी, बहाने की सौगंध खाई थी।