आज की भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति में विकृति आज आई है,
चारों तरफ फैली समाज में बुराई है,
बढ़ा है व्यभिचार,बढ़ गया बलात्कार,
गुम हुआ संस्कार,माता-पिता जिम्मेदार।
बोलना-बैठना बच्चों को न सिखाते हैं,
कहिए तो समयाभाव बताते हैं,
बच्चों से बढ़कर उनकी कमाई है।
तड़प रहा सड़क पर लगा रहा गुहार है,
कोई मदद को देखो नहीं तैयार है।
चौराहे पर मानवता मुंह-बाए खड़ी है,
सामने सड़क पर देखो लाश एक पड़ी है।
कैसी संवेदनहीनता समाज ने दिखाई है।
पश्चिमी सभ्यता का दबदबा भारी है,
आधुनिकता के नाम पर फुहड़ता जारी है।
अपने गौरव अतीत को भुलाया है,
खान-पान,भाषा विदेशी अपनाया है।
हमारी संस्कृति पर आज जम गई काई है।
अतिथियों को देवता जानते थे हम,
उनके सेवा को धर्म मानते थे हम।
आज यदि घर में अतिथि आ जाते हैं,
देखकर उनको हम मुंह बनाते हैं।
पूर्वजों की परंपरा को हमने ठुकराई है।
भारतीय संस्कृति में विकृति आज आई है,
चारों तरफ फैली समाज में बुराई है,
भारतीय संस्कृति में विकृति आज आई है ।