रिवाज़ों की बेड़ियां

एक स्त्री के शब्द :—
रिवाज़ों की बेड़ियों में जकड़े रहें ?
परिवार बचाने के नाम पर यातनाएँ सहें ?
जाति-धर्म के ठेकेदारों ने
बेड़ा-गर्क किया है समाज का,
और दुहाई देते हैं हमें
मेरे लोक-लाज का।
हम मर जायें पर कुछ न कहें ?
रिवाज़ों की बेड़ियों में जकड़े रहें ?
प्रथाएँ बनी थी समाज के पोषण के लिए,
परंतु आज इनका उपयोग हो रहा है
हमारे शोषण के लिए।
हम कुप्रथाओं को छोड़ेंगे,
सदियों की रूढ़ियों को तोड़ेंगे।
जिन्हें लगता है हम कुछ कर नहीं पाएँगे ,
सफल होकर उन्हें अपनी क्षमता दिखाएँगे।
हमारे हौसलों की उड़ान देख
वे दातों तले उंगलियाँ दबाएँगे।