दहन करें अंतर्मन के रावण का

जब तक हृदय में बुराईयों का घर रहेगा,
रावण तब तक अजर-अमर रहेगा।
त्यागेंगे न काम-क्रोध,मद-मोह को,
तब तक राम-रावण में जारी समर रहेगा।

आओ आज मिलकर ये प्रण करें,
ईर्ष्या-द्वेष-लोभ का दहन करें,
रावण को हराना है तो लड़ना पड़ेगा,
अत्याचार न असुरों का सहन करें।

ये शरीर तो नश्वर है नश्वर रहेगा,
जब तक धरती है तब तक अंबर रहेगा,
उपकार नहीं कुछ परोपकार कर,
तेरे कर्म का ही लोगों को खबर रहेगा,

हमें मिलकर अलख जगाना होगा,
अपने परिवार को संस्कार सिखाना होगा,
अंतःकरण के दुःशासन को अनुशासन में लाना होगा,
केवल रावण को ही क्यों? समाज के,
कंस और दुर्योधन को भी जलाना होगा।

क्षमा नहीं असुरों को दंड ही भाता है,
शक्ति में ही विजय निहित है यह पर्व हमें सिखलाता है,
शक्ति और मर्यादा में जो सामंजस्य बैठाता है,
जग पूजता है उसे, मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है।