बेटी और पिता

एक बेटी के लिए दुनिया
उसका पिता होता है
पिता के लिए बेटी
उसकी पूरी कायनात होती है।
बेटी के लिए पिता
हिम्मत और गर्व होता है
पिता के लिए बेटी
उसकी जिन्दगी की साँसे होती हैं।

बेटे से अधिक प्यार
पिता अपने बेटी से करता है
कोई गलती हो बेटी से
झूठी डाँट दिखाते पिता
बेटी जब कुछ मांगे तो
पिता आसमां से तारे तोड़ लाये
बेटी घर में जब होती है
पिता को बड़ा गुरुर होता है।

लुट जाए धन दौलत
चाहे सारा जहांन बिक जाए
बेटी की आंखों में
आँसू भी ना देख सके वो पिता है।

विदा होती है बेटी घर से
बड़ी पीड़ा होती पिता को
आँख में आँसू छिपाकर
बेटी को कमजोर नही होने देता पिता।

कहीं किसी कोने में
फूट फूट कर रोता है वो पिता है
बेटी के विदा होने से
टूट टूटकर बिखरने लगता है वो पिता है।

पिता का साया जब होता सिर पर
बेटी नही घबराती कभी
मायका क्या ससुराल में भी
पिता का संसार सिखाती बेटी।

माँ पर नही
अपने पिता पर गर्व होता है
वो बेटी है।
पिता का साया
जैसे ही उठता है
सर पर से बेटी के
टूटकर बिखर जाती है
जो मोतियों की माला सी
वो बेटी है।

मायका जब आती
क्रंदन सुनकर आसमान भी
रो पड़ता है
उसका क्रंदन उसकी चीत्कार सुन
सब समंझ जाते आई है बेटी
उस दिन दो आत्माओं की मृत्यु होती है
पिता और बेटी।

इहलोक छोड़कर
परलोक गमन होता जिसका
वो पिता है
गर्व,हिम्मत,
साहस,संसार
जिसका खो जाता है
वो बेटी है।

ना पिता ना बेटी कभी बोलते नहीं
कि वो जिंदगी हैं एक दूजे की
सागर से भी गहरा
आसमां से ऊँचा
नाता होता पिता बेटी का।
पिता और बेटी का अटूट
अनोखा
अलौकिक होता बन्धन है।