खुशियों के दीपक

मिट्टी के दिये जलाना
अबकी बार तुम दिवाली में
खुशियों के दीपक जलाना।

आया है दीपों का त्यौहार
खुशियों से झूमे नाचे गायें
मिट्टी को सौंधी सौंधी खुशबू
मेहनतकश कुम्हार की मेहनत
बेकार ना तुम जाने देना
दो जून की रोटी उन्हें खिलाना
मिट्टी के दिये जलाना।
अबकी बार तुम दीपावली में
खुशियों के दीपक जलाना।

भेद-भाव,राग-द्वेष मिटाना
करना तुम छोटी सी शुरुवात ही
राजा हो या रंक या मध्यम
सब मिलजुल मनाना दिवाली
ऊँच-नीच का भेद मिटाना
प्रेम का उजियारा फैलाना
मिट्टी के दिये जलाना।
अबकी बार तुम दीपावली में
खुशियों के दीपक जलाना।

विदेशी कृत्रिम विद्युत दिए
न जला विद्युत भी बचाना
देश की पूंजी देश में रखना
मिट्टी को मुहिम बनाना
मिट्टी से ही प्रेम करना है
और अपना फर्ज निभाना
मिट्टी के दिये जलाना।
अबकी बार तुम दीपावली में
खुशियों के दीपक जलाना।

धन वैभव की चकाचौंध में
पर्यावरण की चिंता ना करते
देशहित के खातिर हमको
है मन अपना शुद्ध बनाना
धरती का ताप ना बढ़ाएं
मन के वहम को है मिटाना
मिट्टी के दिये जलाना।
अबकी बार तुम दीपावली में
खुशियों के दीपक जलाना॥