भांग के सवैया छंद
चमेली के चमन में चिमन चौबे जी बैठे
चौड़े-चौड़े भाल चौड़ा तिलक लगायके।
चेलों आओ चटपट लाओ लाओ सिलबट्ट
चकाचक देओ जरा विजया बनायके।।
सारे काम वहीं छोड़े चैले आए दौड़े दौड़े
घोट रहे भांग मेवा मिश्री मिलायके।
उचित घुटी है जान दूध में दई है छान
भरके गिलास दई चौबे जी को लायके।।
पौड़ी बैठे पंडित जी, पल में गटक गये
एक सांस पी गए होंठों से सटायके।
सिर पांव दोनों डोले चौबे जी तरंग बोले
चौबिन तनिक बैठो मेरे पास आयके।।
चौबिन चिंहुक बोली करो ना अजी ठिठोली
पूजा पेट हित कछु लाती हूं बनायके।
प्रेम पुराण नाथ खोलना फिर मेरे साथ
क्षुधा कूप भर लेओ पहले कुछ खायके।।
चौबे जी चौके में आए दिया है आसन बिछाय
धमक के बैठ गए पालथी लगायके।
खीर पुड़ी छक रहे रायता भी चख रहे
चटनी को चाट रहे दाल में मिलायके।।
भोजन से नींद बढ़ी विजया भी सिर चढ़ी
चौके में ही चित्त हुए पांवों को फैलायके।
हिया खाय हिचकोले चौबिन भला क्या बोले
विजया को कोस रही विरह गीत गायके।।