सुनो तुम मुझे पूनम के चांद सी लुभाती हो स्नेह की स्निग्ध चांदनी में जो नहलाती हो और अरुणोदय की प्रथम रश्मि के साथ भीगी अलकों से रस छिड़क मुझे जगाती हो।
सुनो प्रकृति देवी का मधुर संगीत हो तुम हृदय के कण कण से निसृत गीत हो तुम हे सौभाग्यवती तुम ही तो सौभाग्य हो जन्म जन्मांतर सहचरी मनमीत हो तुम।
सुनो जीवन नईया की तुम पतवार हो स्नेह सरिता की अनवरत धार हो विचलित तनिक तूफान से होता नहीं साथ हो तेरा तो सागर पार हो।