ये दुनिया देख ली
हैरतअंगेज़ ये दुनिया, अब काफी नजदीक से देख ली
दोगली, दोधारी, खुदगर्ज़ और मक्कार दुनिया देख ली।
दिखते कुछ, निकलते कुछ, कहते कुछ और करते कुछ
तरह तरह के मुखौटे लगाए फिरती, ये दुनिया देख ली।
अपनी हो बस वाह-वाह, दूसरों की चाहे निकले आह
नहीं कोई किसी का यहाँ खैरख्वाह, बेदर्द दुनिया देख ली।
कुछ लोग बेहद खुशहाल, तो कुछ भूखे, बेहाल, कंगाल
भीषण असमानता के दर्शन कराती, ये दुनिया देख ली।
गुंडों को मौज़ उड़ाते देखा, शरीफों को कष्ट उठाते देखा
कानून की धज्जियाँ उड़ाती, दबंगों की दुनिया देख ली।
धर्म के नाम पर लड़ मरते, कट्टरवाद का दम खूब भरते
मार,काट मचाने वाले, इन जल्लादों की दुनिया देख ली।
जाति,वर्ग,वंश,समुदाय,धर्म के नाम पर बन बैठे नेता
प्रजातंत्र का माखौल उड़ाती, नेताओं की दुनिया देख ली।
आतंकवाद कहर बन के टूटा, शायद ही कोई देश हो छूटा
मचा रहे जो यहाँ वहाँ तबाही, आँखों से दुनिया देख ली।
अपराधियों का बोलबाला, सच के मुंह पर जड़ा है ताला
बाहु बल और धन बल से, बाज़ी पलटती दुनिया देख ली।
ईश्वर तू कहां है छुपा, जो हो रहा तुझ से नही होगा छुपा
जग को रहने लायक तो बना, ये सुलगती दुनिया देख ली।
डरी,डरी सहमी सी दुनिया, शरीफ का मुश्किल यहाँ रहना
यहाँ रह के क्या करना, बेबस लाचार ये दुनिया देख ली।