तब और अब
शराफत को हासिल था कभी विशिष्ट स्थान
अच्छे खानदानों की थी होती इसी से पहचान।
पैसे को नही, अहमियत देते थे शराफत को
रिश्ते जोड़ने से पहले, ढूढ़ते थे ऐसे खानदान।
गरीबी-अमीरी को देते थे, न ख़ास तवज्जो
खानदानी शराफत को देते खूब मान सम्मान।
समय के साथ साथ आ गया सोच में बदलाव
पैसा है कितना पास, लगाते अब ये अनुमान।
कोठी कार पैसा हो पास, बाकी सब बकवास
न देखे कोई शराफत, न परखे जाते खानदान।
लड़का लड़की ही कर लेते पसंद एक दुसरे को
प्रेम-विवाह, लिव-इन-रिलेशन हुए अब आम।
शराफत को तो अब समझा जाता एक कमजोरी
चतुर, चालाक, दबंग लोगों के गाये जाते गान।
एकल परिवारों को देते, लोग अब प्राथमिकता
संयुक्त परिवारों की थी, कभी निराली ही शान।
कोशिश ये रहती अब सभी की, मिले ऐसा घर
कोई भी भाई बहिन हो ना, हो एकमात्र संतान।
ना शरीफ की रही पूछ, न शराफत की ही अब
समाज में नही मिलता, अब वैसा उचित स्थान।
शराफत था एक गुण, समझते थे सुन्दर गहना
जमाना अब दबंगई का, होता इसी का गुणगान।
शराफत काम कायरों का, होता नही कुछ हासिल
ईंट का जवाब पत्त्थर से देने वाले, पाते अब इनाम।
तब और अब में आया फर्क जमीन आसमान का
पैसा माई बाप अब सबका, पैसे से ही होती पहचान॥