ओहदा
पानी आँख का मर गया है
ओहदा जब से बढ़ गया है।
लगने लगे सब उसको बौने
कद अचानक,यूँ बढ़ गया है।
लगा काटने, यारों से कन्नी
नशा ओहदे का चढ़ गया है।
मिमियाता था मेमने की भांति
दहाड़ने शेर सा, लग गया है।
चिरौरी थी की जिन जिन की
मुश्कें अब कसने लग गया है।
पहुँचाया जिन्होंने शिखर पर
लतियाने उन को लग गया है।
नाक हुई कुछ ज्यादा सेंसिटीव
रूमाल नाक पे रहने लग गया है।
पला बढ़ा खेला पढ़ा जिस घर में
तबेला अब लगने लग गया है।
अनपढ़ मां बाप लगने लगे पैबंद
पहचान छुपाने लग गया है।
नज़र आता नही अपने जैसा अब
पर्दा आँखों पे ऐसा पड़ गया है।
बदली चाल ढाल शक्लो सूरत
पश्चिमी सभ्यता में रंग गया है।
ओहदे के मद में अब रहता चूर
बात बेबात हड़काने लग गया है।
जा कभी था बैठता जिन के बीच
पीछा उन से छुड़ाने लग गया है।
बोल न पाता था दो चार भी लफ्ज़
भाषण अब पिलाने लग गया है।
आँखें मिला कर पाता न था बात
आँखे अब तो दिखाने लग गया है।
गरीब यार रिश्तेदार अब सुहाते नहीं
पींगें अमीरों से बढ़ाने लग गया है।
ओहदे ने दिखाया यूँ कमाल अपना
पीढ़ियाँ सात अब तैराने लग गया है।