बेवज़ह

मुस्कुरा उठता दिल, कभी बेवज़ह
भर भर आता दिल, कभी बेवज़ह।

कुम्हला कभी जाता, बैठ बैठ जाता
बलियों उछलता दिल, कभी बेवज़ह।

झुंझलाने लगता, गुस्सा खाने लगता
गदगद हो उठता दिल, कभी बेवज़ह।

होंठ सी पड़े रहने को ही कभी करता
ठहाके लगाने लगता दिल, कभी बेवज़ह।

दिल से उतरता, कोई दिल में उतरता
रिश्तों में उलझता दिल, कभी बेवज़ह।

परिवार से खुश रहता, बीच उन के रमता
भाग जाने को करता दिल, कभी बेवज़ह।

न है कोई परेशानी, न अंदेशा ऐसा वैसा
फिर जाने क्यों डरता दिल, कभी बेवज़ह।

एक ही ढर्रे पे, गुजरने लगी अब जिंदगी
जीना तो है ही लगाता दिल, तभी बेवज़ह।