नही पता

कब कौन अर्श से आ अचानक पड़े फर्श पर, नही पता
किसका सितारा कब चमक उठे फ़लक पर, नही पता

नाज़ करते नही थकते, जिन रिश्ते-नातों पर हम
कब कर दें वार खंज़र से, पीठ पर आपकी, नही पता

पाल पोस रहे बेटे को समझ, अपने बुढ़ापे की लाठी
सेवा करेगा या छोड़ आएगा वृद्धाश्रम जाकर, नही पता

कोख में ही मार डालते बेटी को, एक बोझ उसे समझ
जाने क्या बनती, निकलती कितनी होनहार, नही पता

कर इकट्ठा लिए जख़ीरे, परमाणु बमों, मिसाईलों के
बारूद के ढेर पे बैठी दुनिया का, होगा क्या आखिर, नही पता

‘शर्मा’ तू तो सोचता रहता यूँ ही, बेसिर-बेपैर की बातें
कब निकल जाएँगे शरीर से तेरे प्राण, आखिर है क्या तुझे पता।