क्या लिखूँ
रहता हूँ सोचता कि क्या लिखूँ
असमंजस में रहता क्या लिखूँ
सब लिख डालूं जो दिल कहता
कि दिमाग में जो आता वो लिखूँ।
सुनी सुनाई बातों पर लिख डालूं
या कि फिर आँखों-देखी लिखूँ
ममता, क्रोध निर्ममता पर लिखूँ
रिश्तों नातों जज्बातों पर लिखूँ ।
झकझोर रहे सवालातों पे लिखूँ
दुश्मनों की खुराफातों पे लिखूँ
लिखूँ वफ़ा बेवफाई के किस्सों पे
या प्यार नफरत के किस्से लिखूँ।
गाँव पे लिखूँ या लिखूँ शहरों पे
अपनों पर या कि लिखूँ गैरों पे
सुंदरता, भिनभिनाती गंदगी पे
या रोटी को भटकती जिंदगी पे।
पहाड़ों झीलों झरनों सागर पर
धरती चाँद सितारों अम्बर पर
कुदरत के सुंदर जीव जंगलों पर
या इंसान के कंक्रीट जंगलों पर।
संवेदनशीलता संवेदनहीनता पे
या के शराफत दबंगई दीनता पे
देश पे मर मिटने वाले जांनिसारों पे
या देश को लूटने वाले गद्दारों पे।
विश्व शांति भाईचारे के पैराकारों पे
संसार भस्म करने वाले हथियारों पे
दरिन्दे वहशी बलात्कारी हत्यारों पे
दंगे करवाने वाले धर्म के ठेकदारों पे।
सत्तालोलुप, दलबदलू नेताओं पर
धर्मभीरू जनता पंडितों मुल्लाओं पर
जो कुछ हो रहा घटित उस पे लिखूँ
या है जिस का अंदेशा उस पे लिखूँ
सोच समझ पहुँचा हूँ इस नतीजे पे
जो लिखूँ गिरेबाँ में झाँक के लिखूँ।