कविता एक भाव रेणु शर्मा कविता लिखी नहीं जातीवो तो लिख जाती हैहृदय से निकलकर पन्नो में उभर आती है कविता कण कण में है,बस भावों का खेल है। कविता बनाई नहीं जाती,वो तो बन जाती हैकविता तो भाव हैपन्नों मे उतर जाती है। हृदय को चीर करअपना मार्ग बना लेती हैकविता प्रेम वियोग है,जो आत्मा से निकल आती हैकविता विरह व्यथा हैजो हृदय को चीर जाती है । कविता वो भाव हैजो आसानी से समझ नहीं आताभाव आत्मा का दूसरा रूप हैजो शरीर को आसानी से नहीं छोड़ताकविता मन से निकली पुकार है। सांसारिक जीवन का कोई खेल नहीं हैजब-जब मन मे शब्दों का तूफान आयातब-तब कविता ने अपना मार्ग बनाया।