मां तुमसे ही है मेरी उत्पत्ति
मां तूने जन्म दिया,
पर गर्लफ्रेंड के बिना दिन कटी,
हम रोशन, हमें बनना है न किसी के पति।
बस इसी तरह बढ़ते रहे मेरी सफलता की गति,
मां तूने मुझे उत्पन्न किया
और मैं तेरा पुत्र हर रोज़ करता हूं
एक कविता की उत्पत्ति॥
मां सुन लो मेरी कविता,
अगले साल की कविता
पर लिखा हूं ये कविता ,
सुन लीजिए आप,
पूजने योग्य है पिता।
लिखता हूं पूजा पाठ व करके योग कविता,
हे ईश्वर,खुदा, मसीहा मत मेरे रोग मिटा,
हे जिन्दगी तू हमें हरा, हमें न तू जिता॥
हार के आऊं हमें हार से है न आपत्ति ,
चाहे मुझ पर आये लाख विपत्ति।
रहें या न रहे मेरी आंख की गति,
बस मां तुम्हारी दया बना रहे, जिससे मैं रोज़ करता
रहूं एक कविता की उत्पत्ति ॥
सुख-दुख सबके जीवन में है सटी,
कुछ बनना है, इसलिए सुनता हूं,
करता हूं न कभी किसी का बेइज्जती।
खुद को पहुंचता, पर पहुंचाता हूं न किसी को क्षति ,
हे माँ तुम्हारी दया बनी रहे,
मैं दुख में भी मुस्कुरा कर
करता रहूं हर रोज़
एक कविता की उत्पत्ति ॥