हम सब अतिथि हैं

सब यहां अतिथि हैं,
सुख-दुख से जीवन बीते है 
आना-जाना ही तो रीति है ,
अमीर हो या गरीब अंतिम संस्कार के लिए
तो यही मिट्टी है। 

जीव-जंतु हाथी और चींटी है,
क्या कहूं मैं रोशन यह ज़िन्दगी भी मीठी है 
जन्म लिए तो मरने की भी एक तिथि है ,
क्या हम क्या आप, हम सभी यहां के अतिथि हैं। 

जो कल जवान रहे, वही आज बूढ़े हुए ,
समय के साथ कृष्ण-राधा भी जुदा हुए 
अमृत भी विष, विष भी समय के साथ सुधा हुए ,
समय की बात है यारों, समय बदलते होशियार भी बेहूदा हुए।  

एक मां की ही संतान सम्पत्ति बांटने में भाग लेते ,
पत्नी आते ही मां-बाप को त्याग देते !
जिसे पाल पोस कर बड़ा करते वही संतान अंतिम
वक्त आग देते ,
सब मतलबी है यारों,सिर्फ अपने काम पर ही दिमाग़ देते । 

तो कोई दिमाग़ लगाकर भी हारा,
कोई हार के बाद भी जीते हैं ,
सफलता-असफलता ही तो जिन्दगी की नीति है 
जिंदगी पूजा पाठ,लेखन कार्य,अर्थ व्यवस्था, संस्कृति
और राजनीति में ही बीती है ,
तब हम आप नहीं,
कहों यारों हम सब अतिथि हैं।