आता हूं तेरी गलियों में तेरी यादों से मिलने को जाता हूं जब लौट के उनसे संग तेरी यादें होती हैं तेरी यादों के वियावान में फिरता मारा मारा हूँ । क्या मैं एक बंजारा हूँ ?
लेकर तेरे सपने अपनी इन आंखों में बेच रहा कुछ टूटे टूटे टुकड़े दिल के कुछ बिखरे से आंसू भीगी सी पलकों पे कुछ अनकहे लफ्ज़ है तेरे सजे हुए मेरे अधरों पे चलती सांसों की डोरी लेकर फिरता मारा मारा हूँ । क्या मैं एक बंजारा हूँ ?
कहती मुझसे तेरी गलियों की हर ठोकर घूम रहा क्यूँ लेकर दिल में उसको दर-दर मैं क्या बोलूं वो क्या जाने मैं तुझको कितना चाहूँ वो क्या जाने तन्हाई के इस जंगल में फिरता मारा मारा हूँ । क्या मैं एक बंजारा हूँ ?