सम्हल रहा है इश्क़

लफ्ज़ दर लफ्ज़ शायरी में बढ़ रहा है इश्क़
उनकी नज़र में और ज़रा खल रहा है इश्क़ ।

तुम मेरे दिल से अभी और खेल सकते हो
अभी तो अपनी चाल सभी चल रहा है इश्क़ ।

सच न सही सब फरेब ही मेरे हिस्से कर दो
तेरे जैसा ही तो बिलकुल बदल रहा है इश्क़ ।

लगता है वो मुझे तोड़ने की कश्मकश में है
साज़िश कोई खिलाफ ऐ दिल रच रहा है इश्क़ ।

रौनक तो उसी से है, महफ़िल किसी की हो
ये न जाने कैसी आग में जल रहा है इश्क़ ।

तरकश में जो भी तीर है तू आजमाता चल
तेरी हर एक चाल से अब सम्हल रहा है इश्क़ ।