तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा

सोच रहा हूँ
तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा
आज नहीं तो
पक्का तुम पर कल लिखूंगा
गर कुछ ढंग का लिख न पाया
तो कुछ बेढंगा लिखूंगा
पर लिखूंगा
तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा ।

सीख जाऊंगा जब मैं सच को झूठ बनाना
और झूठ को जब एक दम सच्चा कर दूँगा
तुमको मैं, मैं खुदको तुम जब लिख पाउँगा
सच कहता हूँ
तभी अधूरी बची हुई रातें लिखूंगा
सोच रहा हूँ
तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा ।

रीत जाऊंगा जब तेरी यादों से बिलकुल
उन राहों से फिर से तेरी यादें लाऊँगा
किन राहों से लाया हूँ मैं ढूंढ के उनको
सुनले तू भी
इतनी सी भी बात न हरगिज़ मैं लिखूंगा
सोच रहा हूँ
तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा ।

घोर उदासी भले दिखाई देगी तुमको
पर मुस्काता सा मुझको देखेगी दुनियाँ
रो देंगे जब दो दृग तन्हाई में आकर
नयनों के उस जलप्लावन को
ठहरा सा दरिया लिखूंगा
सोच रहा हूँ
तुम पर भी मैं कुछ लिखूंगा ।