सच कहता हूँ

झूठ बहुत कहता हूँ यारों सच कहता हूँ
मेरा कोई यकीं न करना सच कहता हूँ ।

मुस्काता हूँ, जब भी महफ़िल में होता हूँ
पर रोता हूँ तन्हाई में सच कहता हूँ ।

ग़म भी सारे ग़म के मारे हो जाते हैं
जब सुनते हैं वो मेरा ग़म सच कहता हूँ ।

भूल गया हूँ अब मैं अपनी मंजिल रस्ता
याद मुझे अब भी तेरा घर सच कहता हूँ ।

उजली पोशाकों के पीछे कालिख छुपती है
यकीं करो न करो मगर मैं सच कहता हूँ ।