सच कहता हूँ सचिन दुबे झूठ बहुत कहता हूँ यारों सच कहता हूँमेरा कोई यकीं न करना सच कहता हूँ ।मुस्काता हूँ, जब भी महफ़िल में होता हूँपर रोता हूँ तन्हाई में सच कहता हूँ ।ग़म भी सारे ग़म के मारे हो जाते हैंजब सुनते हैं वो मेरा ग़म सच कहता हूँ ।भूल गया हूँ अब मैं अपनी मंजिल रस्तायाद मुझे अब भी तेरा घर सच कहता हूँ ।उजली पोशाकों के पीछे कालिख छुपती हैयकीं करो न करो मगर मैं सच कहता हूँ ।