रोज मरते हैं

रोज मरते हैं मगर रोज ही बच जाते हैं
नींद आती नहीं, ख्वाब भी मर जाते हैं।

ये जो सड़के कभी होती ही नहीं वीरां,
कहाँ से आते हैं ये लोग किधर जाते हैं।

न सफर मेरा है कोई, न मेरी मंजिल हैं
आपके साथ यहीं हम भी उतर जाते हैं।

ढूंढ ही लेंगी मुझे मेरी मंजिलें एक दिन
ये सारे रास्ते मिलकर के उधर जाते हैं।

बढ़ाने दो मुझे राह-ए-मैक़दे पे कदम
सुना है शाम ढले पंछी भी घर जाते हैं।