मैंने तुम्हें अभी पढ़ा ही कहाँ है सिर्फ जिल्द देखकर सारांश तो नहीं लिखा जा सकता अध्याय दर अध्याय, पन्ने दर पन्ने किरदारों की कितनी ही गिरहें खुलनी अभी बाकी हैं उपसंहार से पहले प्रस्तावना और प्रस्तावना से पहले अनुक्रमिका सब कुछ जानना है ।
मेरी नियति की रचना सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि मैंने किसको पढ़ा है और कितना पढ़ा है और हज़ार बेकार किताबें पढ़ने से कहीं बेहतर है एक पूरी सजीव किताब पढ़ी जाए और हाशिए पर कभी उँगलियों कभी होंठों कभी बोझिल आँखों की नींदों तो कभी मादकता की यात्रा पर छपे साँसों के निशाँ छोड़े जाएँ ।
तुम मात्र किताब ही नहीं मेरी पूरी पुस्तकालय हो जहाँ मैं ख्वाहिशें लिखता हूँ आशाएँ पढता हूँ और रोज़ अपने भीतर कुछ समेट लेता हूँ । अनंत समय के लिए जो मेरे जीवाश्म पर भी उसी तरह उकेरे होंगे जिस तरह तुम्हारे हर्फ़ अभी मेरे जिस्म पर उगे हुए हैं ।