मेरे हक़ की बात

मैं
जब जब
अपने हक़ की बातें करूँगी
तुम
तब तब
अपनी बातों से मुकर जाया करोगे ।

मैं जिद्द करूँगी
तुम गुस्सा हो जाओगे
मैं गुस्सा करूँगी
तुम और गुस्सा हो जाओगे
मैं और गुस्सा करूँगी
तुम हाथ उठाने पे आ जाओगे
मैं अपनी आवाज़ उठाऊँगी
तुम मेरे बदन पे शोर मचाओगे
और
फिर मैं गिड़गिड़ाऊँगी
फिर तुम खुश हो जाओगे
अपनी दम्भ की पताका भी फहराओगे ।

और
फिर रात में
जब मेरे जिस्म से तुम खेलोगे
फिर मुझे पुचकारोगे
और
गहरी आँहें भरकर बोलोगे
“तुम अपने अधिकारों की बातें क्यों नहीं करती ?”