रोशनी

रोशनी आप के घर में गुलाम है,
वर्ना अँधेरे में तो सारी आवाम है।

बड़ा जोर है जिन्दगी का शहर में,
पास जाके देखिए, सब नाकाम है। 

काम एक भी नहीं आते वक़्त पे,
नहीं तो गिनाने को तन्त्र तमाम है।

सवालों ने जब से लफ्ज़ खो दिए,
कोर्ट- कचहरी सब को आराम है।

सियासत से कोई उम्मीद ना कर,
मेरे साथ तेरा भी बुरा अंजाम है। 

अमावस में चाँद की चाह है तुम्हें,
ये कैसा दर है, ये कैसा मकाम है।