काइल नही होता

इंतज़ार करने से भी सब हासिल नही होता
जो दरिया है, वो कभी साहिल नही होता।

ज़िन्दगी भले ही हो रोज़ नज़्र-ए-मसाइल
खुदाया, ये दिल कभी बोझिल नही होता।

वो मुझ तक आता है और गुज़र जाता है
बसा है नैनों में, रूह में शामिल नही होता।

कैसे मानें कि बेहद कुछ अच्छा नहीं होता
इश्क़ जितना भी हो, वो फ़ाज़िल नही होता।

कुछ तो बात है जरूर तुम में, सच जानो
वर्ना यूँ ही मैं किसी का काइल नही होता।

मैं चाहता हूँ कि अमन-चैन का जहान हो
मैं खुदा नही, मेरा कहा तामील नही होता।


नज़्र-ए-मसाइल– परेशानियों से घिरा हुआ ।

काइल – प्रशंसक ।