बेटियों को देखकर यही समझ आता है सलिल सरोज बेटियों को देखकर यही समझ आता हैवक़्त किस तरह तेजी से गुज़र जाता है। जिन हाथों में गुड्डे-गुड़ियाँ खेला करते थेन जाने कब कागज़ कलम उतर आता है। हाथ पीले देखकर, दुल्हन बनी देखकरआँखों को केवल रोना ही नज़र आता है। वो सब छोटे जूते, वो उसकी तुतली बातेंरह रह कर पूरे घर में ही पसर जाता है।