देशभक्त

आजादी के समर वीर थे, लहू गिराकर धरती पर।
मुक्त हवाएं वतन सौंप कर, झूल गए वे तख्ती पर।

वंदन कर के भारत माँ को, गोली सीने पर खाई,
चूम लिया फांसी का फंदा, गर्व है इनकी हस्ती पर।

खुशनसीब वह सपूत माँ के, अरि के सम्मुख डटे रहे,
लहू बहाने आगे आए, धन्य है ऐसी बस्ती पर।

हम हिन्दी हैं हिंद हमारा, एक-दूजे बिन हम नहीं,
आपस में ही रचे बसे हैं, नमन है ऐसी मस्ती पर।

वंदे मातरम जय-जय हिंद, एक जुवां आवाज हुई,
कूद गए मैदान जंग में, वंदन वतन परस्ती पर।

मातृभूमि के रखवाले हम, जान हथेली पर रखते,
एक चमन के माली हैं सब, नमन हिंद की गश्ती पर।

इक-दूजे का हाथ थाम कर, नमन तिरंगे को कर लें,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, ‘श्री’ सवार इक कश्ती पर।