मेरी माँ
इतनी बड़ी दुनिया में बस वो ही सच्ची लगती है,
कितनी भी मुझसे गुस्सा हो बस वो ही अच्छी लगती है।
जिसके बिन घर का आँगन सूना सूना सा लगता है,
उस प्यारी माँ के बिन भी तो एक पल भी भारी लगता है।
माँ के बाहर जाने पर जब हम अकेले रह जाते हैं,
पापा के गुस्सा होने पर हम अपने आँसू छुपाते हैं।
जब रात अंधेरी होती है जब सोते हैं हम रोते हैं,
जब माँ की यादों के बिन कुछ भी न अच्छा लगता है
उस प्यारी माँ के बिन भी तो एक पल भी भारी लगता है।
जब माँ से रुपया लेकर हम भी स्कूल जाते थे,
स्कूल से आकर उनको सारा हाल सुनाते थे।
वो माँ ही थी जो मेरे लिए खुद को भूल जाती थी,
अपने कोमल हाथों से मेरे लिए खाना बनाती थी।
मेरे मना करने पर भी वो प्यार से मुझे खिलाती थी
अब तो वो पल जब भी मुझको याद आने लगता है,
उस प्यारी माँ के बिन भी तो एक पल भी भारी लगता है।
चाहे कितनी भी गुस्सा हो वो हँसकर मुझे बनाती थी,
हरदम हरपल अपनी ममता मुझपर हँसकर लुटाती थी।
जो मेरे सुख की खातिर हर दुख को सह लेती थी,
अपनी तकलीफ़ों को हमेशा हँसकर वह छुपाती थी।
ऐसी माँ का दर्शन तो ईश्वर से प्यारा लगता है,
उस प्यारी माँ के बिन भी तो एक पल भी भारी लगता है।